जग में लोग अनेक है , हर में है गुण दोष ॥
तुलना करना व्यर्थ है, खुद से कर संतोष ॥
गाँधी न थे भगत सम ,कान्हा न सम राम ॥
कोई किसी के सम नहीं ,सबकी अपनी पहचान ॥
मोल करे न खुद का जब तक ,मोल करें न और ॥
मोल जो खुद का कर लिया,हर कोई लेवे ठौर ॥
देख पराये सफ़र को,मन तू क्यों घबराय ॥
सफ़र तेरा कुछ और है,अलग तेरी है राह ॥
राम तुम्हारी दुनिया में,भांति भांति के लोग ॥
दो बराबर मिल गए ,गजब कहूँ संजोग ॥
तुलना करना व्यर्थ है, खुद से कर संतोष ॥
गाँधी न थे भगत सम ,कान्हा न सम राम ॥
कोई किसी के सम नहीं ,सबकी अपनी पहचान ॥
मोल करे न खुद का जब तक ,मोल करें न और ॥
मोल जो खुद का कर लिया,हर कोई लेवे ठौर ॥
देख पराये सफ़र को,मन तू क्यों घबराय ॥
सफ़र तेरा कुछ और है,अलग तेरी है राह ॥
राम तुम्हारी दुनिया में,भांति भांति के लोग ॥
दो बराबर मिल गए ,गजब कहूँ संजोग ॥
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