दोहे
विपिन क्रोध अंगार सम ,मन में राखो नाहि ॥
दूजा हत बाद में होवे , पहले हाथ जल जाहि ॥
जग में रहकर जग का ही ,करने लगे हैं घात ॥
क्या ढाई आखर प्रेम के ,समझ कोई नहि पात ॥
बदल बदल के पींजरा , पंछी सीखत पाठ ॥
पाठ सीख पंछी कहीं , दूर गगन उड़ जात ॥
विचार से बना है आज ,कल भी है ये विचार ॥
विचार से बना तेरा जग,कर भी ले ये विचार ॥
(दोहा मीटर ->१३ -११ ,पहले और तीसरे चरण में १ ३ मात्राए ,दूसरे और चोथे चरण में १ १ )
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