Sunday 7 April 2013

दिल चाहता है

जल  का अनल का ,न किसी महल  का
मुझे चाहिए बस प्यार दो पल का
ईश वंदना के लिए श्रद्धा से जो तुम लाये
ग्रास मुझे दे दो बस उस नारियल का

मेह का मम कम है नेह की नमी से
हो गया दिल बंजर देखो नेह की कमी से
तो नेह के मह जो खुद ताप के है देता
जल मुझे दे दो भैया उस सागर का

गुण को गुनो चाहे चर का अचर का
बन तू सुधाधर, मत विषधर सा
पर पे जो मर के अमर  हो जाए भाई
मुझे भी बना दो प्रभु उस गुणधर सा

मन दर्पण में जो  दिख जाएँ  भगवन
कर मन अर्पण , उनको तत्क्षण
अर्पण मन दर्पण कर तत्क्षण
कर जीवंत हर पल जीवन का