Sunday 17 March 2013

पांच पाप


हिंसा
तन से न आघात दे ,वचन से न दे पीर ॥
मन से हिंसा त्याग दे,वचन कहें महावीर ॥

झूठ
झूठ  सदा बोलत रहे  ,सच्ची बात छुपाय  ॥
तू पहले सच बोल दे,कोई और न कह जाय ॥

चोरी
चोरी करके बाबरा ,पर धन जितना खाए ॥
उसका बंधू कई गुना , घाटे में चुक जाए ॥

कुशील
देख पराई  नार को,मन न होय मलीन ॥
दीप शील का जला रहे,कृपा करो महावीर ॥

परिग्रह 
भले जरुरत न रही,फिर भी हैं ले आय ॥
रे परिग्रही बाबरे ,काम सभी न आय ॥
 

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